Friday, May 23, 2014

स्वामी विवेकानंद के कुछ विचार

' जागो, उठो और तब तक चलते रहो जब तक तुम्हें अपने लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाये'

हमारे लिए समय रोने के लिए नहीं है. हम आनंद के आंसू भी नहीं बहा सकते. हम बहुत रो चुके हैं. यह समय कोमल बन्ने का नहीं है कोमलता हमारे जीवन में इतने लम्बे समय से चली आरही है कि हम रुई के ढेर सदृश हो गए हैं. ... आज हमरे देश को जिन चीजों की आवश्यकता है वे हैं लोहे की मांसपेशियां, इस्पात की तन्तिकाएं प्रकांड संकल्प जिसका कोई प्रतिरोध न कर सके. जो अपना काम हर प्रकार से पूरा कर ले, चाहे उसके लिए महासागर के तल में जाकर मृत्यु का आमना सामना ही क्यों न करना पड़े. यहाँ है जिसकी हमें आवश्यकता है और इसका हम तभी सृजन कर सकते हैं तभी स्थापना कर सकते हैं और उसे तभी शक्तिशाली बना सकते हैं जबकि हम अद्द्वेत के आदर्श का साक्षात्कार कर लें, सबकी एकता के आदर्श की अनुभूति कर लें. अपने में विश्वास, विश्वास और विश्वास. यदि तुम्हें अपने तेतीस करोड़ देवताओं में तथा उन सब देवताओं में विश्वास है जिन्हें विदेशियों ने तुम्हारे बीच प्रतिष्ठित कर दिया है. किन्तु फिर भी अपने में विश्वास नहीं है तो तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता. अपने में विश्वास रखो और उस विश्वास पर दृढ़ता पूर्वक खड़े रहो. ..

.... क्या कारण है कि हम तेतीस करोड़ लोगों पर पिछले एक हजार वर्षों से मुट्ठी भर विदेशी शाशन करते आये हैं. क्योंकि उन्हें अपने में विश्वास था हमें नहीं है.

'व्यक्तित्व मेरा आदर्श वाक्य है व्यक्तियों को प्रशिक्षित करने के अतिरिक्त मेरी अन्य कोई आकांक्षा नहीं है'

'अकेले एक व्यक्ति में सम्पूर्ण विश्व निहित होता है '

' जब तक मेरे देश का एक कुत्ता भी भूखा रहता है जब तक उसको भोजन देना और उसकी देखभाल करना ही मेरा धर्म है इसके अतिरिक्त और जो कुछ है वह अधर्म है अथवा ऋण धर्म है.'

' भुखमरी से पीड़ित मनुष्य को धर्म का उपदेश देना कोरा उपहास है .....भारत वह देश है जहाँ दसियों लाख  लोग  महुआ का फूल खाकर रहते हैं. और दस या बीस लाख साधू तथा एक करोड़ के लगभग व्राह्मण इन लोगों का रस चूसते हैं.'