Saturday, May 31, 2014

बादलों के दल नहीं थे

पेड़ में बस पत्तियां थीं फल नहीं थे
इसलिए तोते यहाँ पर कल नहीं थे

हम अकेले ही चले थे नाव लेकर
हंसने वाले थे बहुत संबल नहीं थे

खेत सूखे थे मगर जोते हुए थे
पर उमड़ते बादलों के दल नहीं थे

आ गए फिर लौटकर जब स्वागतम है
तुम नहीं थे, आज वाले पल नहीं थे

कल कुहासा था, अँधेरा था, दिए थे
पूर्णिमा के पल्लवी शतदल नहीं थे

आज उनके द्वारा तोरण से सजे हैं
जिनके तन पर कल यहाँ वल्कल नहीं थे

- नमालूम