Tuesday, May 20, 2014

प्रतीक्षा

क्या तुमने उस बेला मुझे बुलाया था कनु ?
लो मैं सब छोड़ छाड़ कर आ गयी !

इसलिए तब
मैं तुममें बूँद की तरह विलीन नहीं हुई थी
इसीलिए मैंने अस्वीकार कर दिया
तुम्हारे गोलोक को
कालावाधिहीन रस
क्योंकि मुझे फिर आना था !

तुमने मुझे पुकारा था न
मैं आ गयी हूँ कनु  !

और जन्मान्तरों की पगडण्डी के
कठिनतम मोड़ पर खड़ी होकर
तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हूँ
कि, इस बार इतिहास बनाते समय
तुम अकेले न छूट जाओ !

सुनो मेरे प्यार !!

प्रगाढ़ के विलाक्षणों में अपनी अन्तरंग
सखी को तुमने बांहों में गूंथा
पर उसे इतिहास में गूंथने से हिचक क्यों गए प्रभु ?

बिना मेरे कोई भी अर्थ कैसे निकल पाता
तुम्हारे इतिहास को
शब्द, शब्द, शब्द......
राधा के बिना
सब
रक्त के प्यासे
अर्थहीन शब्द !

सुनो मेरे प्यार !
तुम्हें मेरी जरूरत थी न
लो मैं सब छोड़कर आ गयी हूँ
ताकि कोई यह न कहे
कि तुम्हारे अन्तरंग के लिए सखी
केवल तुम्हारे सांवरे तन के नशीले संगीत कि
ले बनकर रह गयी.....
मैं आ गयी प्रिय !!
मेरी वेणी में अग्नि पुष्प गूंथने वाली
 तुम्हारी उँगलियाँ
अब इतिहास में अर्थ क्यों  नहीं गूंथती?
तुमने पुकारा था न !

मैं पगडण्डी के कठिनतम मोड़ पर
तुम्हारी प्रतीक्षा में
अडिग खड़ी हूँ कनु मेरे !!

( धर्मवीर भारती कृत 'कनुप्रिया' से )

25.04.99