Sunday, May 18, 2014

तुम्हारा स्पर्श

मैं अधूरी सी थी
तुमसे मिलने से पहले
अपने आप में सिमटी हुयी
किन्तु पाकर तुम्हारा स्पर्श
खिल उठा मेरा रोम-रोम
कली  की मानिंद
झुक सी गयी मेरी नज़र
डूबती गयी मैं हया के समंदर में

मेरे अहसास
हो गए तब्दील
प्यार के रंग में
कंचन सी हो गयी मेरी काया
सोने सा दमक उठा
मेरा शरीर
मन हो गया बेकाबू
तुम्हारे जरा से स्पर्श से

- नमालूम