Sunday, May 18, 2014

नाता

मैं एक मूढ़ परीक्षार्थी
तुम उलझी सी प्रश्नावली
मैं टूटा दर्प अभिलाषी का
तुम आस हर प्रत्याशी की

मैं नेता का अनर्गल प्रलाप
तुम प्रभाती का मधुर अलाप
मैं स्याह रातों का कलंक
तुम पूनम का अकलुष मयंक

फिर भी हमारा कुछ नाता है-
बिना मेरे क्या मूल्य तुम्हें मिल पता है

- नमालूम