Wednesday, May 21, 2014

जो पूजाएँ अधूरी रहीं

जो पूजाएँ अधूरी रहीं
वे व्यर्थ न गयीं
जो फूल खिलने से पहले मुरझा गए
और नदियाँ रेगिस्तानों में खो गयीं
वे भी नष्ट न हुयीं
जो कुछ रह गया पीछे जीवन में
जानता हूँ
निष्फल न होगा
जो मैं गा न सका
हे प्रकृति !
वह तुम्हरे साज पर बजता रहेगा

- विश्व कवि रवींद्र नाथ ठाकुर
26.04.99