Friday, May 30, 2014

पुकार

जब काल का प्रवाह
कर देता अहं क्षार-क्षार

तब जहाँ से मिल सके
जीवन का अधिकार
वही है मुझे स्वीकार
करना है उससे प्यार
बस चाहिए, उसका ही हाथ
उसका ही विश्वास
वही है.......

जन्म जन्मान्तरों की आस
वही है सर्वरक्षक
कलुष भक्षक
अनंत-अकाल
बिन लय- बिन ताल
जानता सभी सुरों की चाल
बिन गाये
गाता सुगम संगीत
कराता आनंद की प्रतीति
बना लेता सर्व को मीत
हो स्थिर .....

जो अहर्निश डोलता
हर द्वार खोलता
बन अमृत झरता
शून्य में सागर भरता
देकर काल को अभयदान
कराता स्वयं की पहचान
जानूं न जानूं
भले ही न पहचानूँ
पर .............

मुझे करने दो
उसका ही वंदन
उसका ही अभिनन्दन
वही तो है -
मेरे जीवन का आधार
जन्म - जन्मान्तरों की पुकार

- नरेन्द्र मोहन