Tuesday, May 27, 2014

' गुनाहों का देवता ' से -

मानव जाति दुर्बल नहीं है. अपने विकास क्रम में वह उन्हीं संस्थाओं, रीति रिवाजों और परम्पराओं को रहने देती है जो उसके असितत्व के लिए बहुत आवश्यक होती है. अगर वे आवश्यक न हुयी तो मानव उनसे छुटकारा मांग लेता है.

प्रेम विवाह अक्सर असफल होते हैं, लेकिन सम्भव है वह प्रेम न होता हो. जहाँ सच्चा प्रेम होगा वहां कभी असफल विवाह नहीं होंगे.

घवराओ न देवता, तुम्हारी उज्जवल साधना में कालिख नहीं लगाउंगी.अपने आँचल में पोंछ लूंगी.

अक्सर कब, कहाँ और कैसे मन अपने को हार बैठता है. यह खुद हमें पता नहीं लगता. मालूम तब होता है जब जिसके कदम पर हमने सर रखा है वह झटके से अपने कदम घसीट ले. उस वक़्त हमारी नींद टूट जाती है और तब जाकर हम देखते हैं कि अरे हमारा सिर तो किसी के क़दमों पर रखा हुआ था. और उनके सहारे आराम से सोते हुए हम सपना देख रहे थे कि हमारा सिर कहीं झुका ही नहीं.

 मैं तुम्हारे मन को समझता हूँ सुधा ! तुम्हारे मन ने जो तुमसे नहीं कहा, वह मुझसे कह दिया था. लेकिन सुधा, हम दोनों एक दुसरे की ज़िन्दगी में क्या इसीलिए आये कि एक दूसरे को कमजोर बना दें. या हम लोगों ने स्वर्ग की ऊचाईयों पर बैठकर आत्मा का संगीत सुना सिर्फ इसलिए कि उसे अपने ब्याह की शहनाई में बदल दें.

तुम गुस्सा मत हो, दुखी मत हो, तुम आज्ञा दोगे तो मैं कुछ भी कर सकती हूँ, लेकिन हत्या करने से पहले यह तो देख लो कि मेरे ह्रदय में क्या है.

जीवन में अलगाव, दूरी, दुःख और पीड़ा आदमी को महान बना सकती है. भावुकता और सुख हमें ऊंचे नहीं उठाते.

सुधा के आंसू जैसे नसों के सहारे उसके ह्रदय में उतर गए और जब ह्रदय डूबने लगा तो उसकी पलकों पर उतरा आये.

सुधा के मन पर जो कुछ भी धीरे-धीरे मरघट की उदासी की तरह बैठता जा रहा था. और चंदर अपने प्यार से , अपनी मुस्कानों से , अपने आंसुओं से धो देने के लिए व्याकुल हो उठा था. लेकिन यह ज़िन्दगी थी जहाँ प्यार हार जाता है, मुस्कानें हार जाती हैं. आंसू हार जाते हैं.- तश्तरी, प्याले,कुल्हड़ , पत्तलें ,कालीनें , दरियां और बाजे जीत जाते हैं. जहाँ अपनी ज़िन्दगी की प्रेरणा के आंसू गिनने के बजाये कुल्हड़ और प्याले गिनवाकर रखने पड़ते हैं और जहाँ किसी आत्मा की उदासी को अपने आंसुओं से धोने के बजाये पत्तलें धुलवाना ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. 

मुझे किसी का डर नहीं, तुम जो दंड दे चुके हो, उससे बड़ा दण्ड तो अब भगवान भी नहीं दे सकेंगे.

जब आदमी अपने हाथ से आंसू मोल लेता है अपने आप दर्द का सौदा करता है तब दर्द और आंसू तकलीफदेह नहीं लगते.और जब कोई ऐसा हो जो आपके दर्द के आधार पर आपको देवता बनाने के लिए तैयार हो और आपके एक-एक आंसू पर अपने सौ-सौ आंसू बिखेर दे, तब तो कभी -कभी तकलीफ भी भली मालूम देने लगती है.

जब तक सुधा सामने रही कभी उसे यह नहीं मालूम हुआ कि सुधा का क्या महत्व  है उसकी ज़िन्दगी में . आज सुधा दूर थी तो उसने देखा कि उसकी साँसों से भी जयादा आवश्यक थी ज़िन्दगी के लिए...

आदमी हँसता है, दुःख दर्द सभी में हँसता है. जैसे -जैसे आदमी की प्रसन्नता थक जाती है वैसे ही कभी-कभी रोते-रोते आदमी की उदासी थक जाती है और आदमी करवट बदलता है ताकि हंसी की छांह में कुछ विश्राम कर फिर वह आंसुओं की कड़ी धूप में चल सके.

अविश्वास आदमी की प्रवृत्तियों को जितना बिगाड़ता है विश्वास आदमी को उतना ही बनाता है ऐसे अवसरों पर जब मनुष्य को गंभीरतम उत्तरदायित्व सौंपा जाता है तब स्वभावतः आदमी के चरित्र में एक विचित्र सा निखार आ जाता है.
 
जीवन की समस्याओं  के अंतर्विरोधों में जब आदमी दोनों पक्षों को समझ लेता है तब उसके मन में एक ठहराव आ जाता है. वह भावना से ऊपर उठकर स्वच्छ बौद्धिक धरातल पर ज़िन्दगी को समझने की कोशिश करने लगता है. चंदर अब भावना से हटकर ज़िन्दगी को समझने की कोशिश करने लगा था. वह अब भावना से डरता था. भावना के तूफ़ान में इतनी ठोकरें खाकर अब उसने बुद्धि की शरण ली थी और एक पलायन वादी की तरह भावना से जागकर बुद्धि की एकांगिता में छिप गया था. कभी भावुकता से नफरत करता था, अब वह भावना से ही नफरत करने लगा था.

मेरी आत्मा सिर्फ तुम्हारे लिए बनी थी, उसके रेशे में वह तत्व है जो तुम्हारी ही पूजा के लिए थे. तुमने मुझे दूर फेंक दिया, लेकिन इस दूरी के अँधेरे में भी जन्म-जन्मान्तर तक भटकती हुयी सिर्फ तुम्हीं को ढूंढूंगी.

मनुष्य का एक स्वभाव होता है. जब वह दुसरे पर दया करता है तो वह चाहता है कि याचक पूरी तरह विनम्र होकर उसे स्वीकार करे. अगर याचक दान लेने में कहीं भी स्वाभिमान दिखलाता है तो आदमी अपनी दानवृत्तिऔर दयाभाव भूलकर नृशंस्ता से उसके स्वाभिमान को कुचलने में व्यस्त हो जाता है.

नफ़रत से नफरत बढती है, प्यार से प्यार जागता है. बिनती के मन का सारा स्नेह सूख सा गया था. वह चिडचिडी , स्वाभिमानी , गंभीर और रूखी हो गयी थी. लेकिन औरत बहुत कमजोर होती है. ईश्वर न करे कोई उसके ह्रदय की ममता को छू ले. वह सब कुछ बर्दाश्त कर लेती है लेकिन अगर कोई , किसी तरह उसके मन के रस को जगा दे, तो वह फिर अपना सब अभिमान भूल जाती है.

तुम बहुत गहराई से सोचते हो . लेकिन मैं तो एक मोटी सी बात जानती हूँ कि जिसके जीवन में वह प्यास लग जाती है वह फिर किसी भी सीमा तक गिर सकता है. लेकिन जिसने त्याग किया, जिसकी कल्पना जागी, वह किसी भी सीमा तक उठ सकता है. मैंने तुम्हें उठते हुए देखा है.

एक क्षण आता है कि आदमी प्यार से विद्रोह कर चुका है अपने जीवन की प्रेरणा मूर्ती की गोद में बहुत दिन तक निर्वासित रह चूका है. उसका मन पागल हो उठता है. फिर से प्यार करने को, अपने मन का दुलार फूलों की तरह बिखरा देने को.

तुम्हें खोकर, तुम्हारे प्यार को खोकर मैं देख चुका हूँ कि मैं आदमी नहीं रह पाता, जानवर बन जाता है. सुधा, अगर तुम आज से कुछ महीनों पहले मिल जाती तो जो ज़हर मेरे मन में घुट रहा है वह तुम्हारे सामने व्यक्त करके मैं बिलकुल निश्चिन्त हो जाता.....

मेरे भगवान, मेरे प्यार ने मुझे अब उस दुनिया में पहुंचा दिया है जो नैतिक-अनैतिक  से ऊपर है.
*** शरीर कि प्यास भी उतनी ही पवित्र और स्वाभाविक है जितनी आत्मा की पूजा आत्मा की पूजा और शरीर की प्यास दोनों अभिन्न हैं. आत्मा की अभिव्यक्ति शरीर से है. शरीर कसंस्कर, शरीर का संतुलन, आत्मा से है. जो आत्मा को शरीर से अलग कर देता है वह मन  भयंकर तूफानों में उलझकर चूर-चूर हो जाता है. चंदर, मैं तुम्हारी आत्मा थी. तुम मेरे शरीर थे. पता नहीं कैसे हम लोग अलग हो गए.

ज़िन्दगी का यंत्रणा चक्र एक वृत्त पूरा कर चुका था. सितारे एक क्षितिज से उठकर, आसमान पार कर दुसरे क्षितिज तक पहुँच चुके थे. साल डेढ़ साल पहले सहसा ज़िन्दगी की लहरों में उथल-पुथल मच गयी थी. और विक्षुब्ध महासागर की तरह भूखी लहरों कि बाहें पसार कर वह किसी को दबोच लेने में हुंकार उठी थी. अपनी भयानक लहरों के शिकंजे में सभी को झकझोर कर सभी विश्वासों और भावनाओं को चकनाचूर कर अंत में सबसे प्यारे सबसे मासूम सबसे सुकुमार व्यक्तित्व को निगल कर अब धरातल शांत हो गया था. तूफ़ान थम गया था. बादल खुल गए थे और सितारे फिर आसमान के घोंसले से भयभीत विह्गे शावकों की तरह झाँक रहे थे.

' कैफ बरदोश बादलों को न देख
बेखबर, तू न कुचल जाये कहीं'
27.04.99