Thursday, May 15, 2014

चल तू अपनी राह पथिक

चल तू अपनी राह पथिक, तुझको विजय पराजय से क्या
होने दे होता है जो कुछ, उस होने का हो निर्णय  क्या
भंवर उठ रहे हैं सागर में, मेघ उमड़ते हैं अम्बर में
आंधी और तूफ़ान डगर में
तुझको तो केवल चलना है, चलना ही है तो फिर भय क्या

अरे थक गया क्यों बढ़ता चल, उठ संघर्षों से लड़ता चल
जीवन विषम पंथ चलता चल
अड़ा हिमालय हो यदि आगे , चढ़ूँ कि लौटूं यह संशय क्या

होने दे होता है जो कुछ, उस होने का हो निर्णय क्या

24.04.99