Tuesday, June 3, 2014

पत्थर के सनम

पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम
पत्थर के ही इंसान पाए हैं

तुम शहरे मुहब्बत कहते हो
हम जान बचा के आये हैं


बुतखाना समझते हो जिसको
पूछो न वहां क्या हालत है
हम लोग वहीँ से लौटे हैं
बस शुक्र करो लौट आये हैं

तुम शहरे मुहब्बत कहते हो
हम जान बचा के आये हैं

हम सोच रहे हैं मुद्दत से
अब उम्र गुजारें तो कहाँ
सहरा में ख़ुशी के फूल नहीं
शहरों पे ग़मों के साए हैं

होठों पे तबस्सुम हल्का सा
आँखों में नमी सी है कातिल
हम एहले मुहब्बत पर मंज़र
ऐसे ही समाने आये हैं

तुम शहरे मुहब्बत कहते हो
हम जान बचा के आये हैं
पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम