Friday, June 6, 2014

ज़िन्दगी की महफ़िल में, ऐसे कौन आता है

ज़िन्दगी की महफ़िल में, ऐसे कौन आता है
कोई शख्स मिलता है, जब ख़ुदा मिलाता है

यूँ तो मैं सुनाता हूँ, जो भी याद आता है
आदमी न जाने क्यूँ, सुन के भूल जाता है

तुम मेरे करीब आओ , दिल की रौशनी बनकर
चाँद का भरोसा क्या , चाँद डूब जाता है

कितना रब्त है दिल को , झनझनाते तारों से
साज को जो छूता हूँ, जिस्म गुनगुनाता है

तकते- तकते राहों को, थक गयीं मेरी आँखें
जाने कब वह आएगा, दिल जिसे बुलाता है

देख, मारने वाले, तेरे दस्त-ओ-बाजू से
उसके हाथ लम्बे हैं , जो मुझे बचाता है

मेरे दिल की दुनिया में, इक चिराग है 'संजर'
जो मुझे अंधेरों में , रास्ता दिखाता है

- 'संजर'